आलू की खेती से अच्छी पैदावार कैसे लें
- Krishna

- Oct 11
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आलू (Potato) भारत में सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय फसलों में से एक है। सही देखभाल, सिंचाई और उर्वरक के उपयोग से आलू की पैदावार बढ़ाई जा सकती है। इस post में आलू की खेती के हर स्टेप को विस्तार से बताया गया है ताकि किसान बेहतर फसल उगा सकें।
माना जाता है की आलू की उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका से हुई है आलू भारत की महत्वपूर्ण फसल है जो तमिलनाडू और केरल के अलावा देश के सभी प्रांतों में उगाया जाता है भारत में आलू की औसत उपज 152 कुं/हेक्ट है जो विश्व की औसत से काफी कम है। भारत में चावल, गेहूं, गन्ना की खेती के बाद क्षेत्रफल में आलू का चौथा स्थान है।
आलू में मुख्य रूप से 80-82 प्रतिशत पानी होता है और 2 प्रतिशत चीनी, 14 प्रतिशत स्टार्च,2 प्रतिशत प्रोटीन,वसा 0.1 प्रतिशत,1 प्रतिशत खनिज लवण तथा थोड़ी मात्रा में विटामिन्स भी होते हैं।
1. उपयुक्त समय और भूमि का चयन
आलू की खेती के लिए ठंडा और समशीतोष्ण मौसम उपयुक्त होता है। भारत में अक्टूबर से दिसंबर तक आलू रोपा जाता है। आलू के लिए दो प्रकार की भूमि उपयुक्त हैं:
गहरी और हल्की दोमट मिट्टी
अच्छी जल निकासी वाली भूमि
मिट्टी में pH 5.5 से 6.5 तक होना चाहिए। बहुत अधिक एसिडिटी फसल को नुकसान पहुंचा सकती है।
2. बीज की किस्म का चयन
आलू की किस्में मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं:
जल्दी पकने वाली किस्में: जिनमें 60-90 दिन में फसल तैयार हो जाती है।
मध्यम समय वाली किस्में: 90-110 दिन में पकने वाली।
देर से पकने वाली किस्में: 110-130 दिन में पकने वाली, जो उच्च पैदावार देती हैं।
किसान अपनी कृषि परिस्थितियों के अनुसार किस्म का चयन करें।
आलू की अच्छी किस्में
फसल के अच्छे उत्पादन के लिए अच्छी किस्म की आवश्यकता होती है जिससे किसानों को अधिक उत्पादन मिल सके।
केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने अपनी वेबसाइट पर आलू की लगभग सभी किस्मों के बारे में बताया है.उन्ही मे से कुछ क़िस्मों में से मैं आप सभी को बताने वाला हों जिससे आप सभी कम लागत में अच्छा उत्पादन क,आर सकें।
कुफरी आलू की किस्म | प्रति हेक्टेयर अनुमानित पैदावार (क्विंटल) |
कुफरी गंगा | 350-400 क्विंटल |
कुफरी ललित | 300-350 क्विंटल |
कुफरी चिप्सोना-4 | 300-350 क्विंटल |
कुफरी थार-3 | 450 क्विंटल |
कुफरी लीमा | 300-350 क्विंटल |
आलू की किस्म | प्रति हेक्टेयर पैदावार (क्विंटल) | विशेषताएँ और क्षेत्र |
कुफरी गंगा | 350-400 | मैदानी इलाकों के लिए उपयुक्त |
कुफरी थार-3 | 450 | पानी बचाने वाली किस्म, उच्च पैदावार |
कुफरी ललित | 300-350 | पूर्वी मैदानी क्षेत्र के लिए बेहतर |
कुफरी चिप्सोना-4 | 300-350 | कर्नाटक, पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध |
कुफरी मोहन | 350-400 | रोग प्रतिरोधी, उत्तरी मैदानी क्षेत्र |
कुफरी बहार (3797) | 250-300 | जल्दी पकने वाली, उत्तर भारत के लिए |
कुफरी पुखराज | 350-400 | देर से तुड़ाई वाली किस्म |
कुफरी संगम | 350-400 | भंडारण के लिए अच्छी किस्म |
कुफरी लालिमा | 300-350 | पाला प्रतिरोधी, उत्तर भारत के लिए |
3. बीज की तैयारी
आलू की खेती में बीज के रूप में कंद (ट्यूबर) का प्रयोग होता है। बीज की गुणवत्ता अच्छी होना जरूरी है। बीज की तैयारी के लिए:
बीज कंदों को स्वस्थ और रोगमुक्त चुनें।
कंदों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटें, प्रत्येक टुकड़ा कम से कम 1-2 अंकुर ( sprouts) वाला होना चाहिए।
कटाई के बाद बीज को धूप में 1-2 दिन सुखाएं ताकि सड़न न हो।
4. खेत की तैयारी
खेत को अच्छी तरह जुताई करें ताकि मिट्टी ढीली और हवादार हो।
खेत को समतल करना जरूरी है जिससे जल निकासी में सुविधा रहे।
खेत में 3-4 बार सिंचाई करने के बाद मिट्टी उपयुक्त नमी वाली होनी चाहिए।
5. बुवाई की प्रक्रिया
बुवाई आमतौर पर लाइन में या गड्ढे (2-3 इंच गहरे) में की जाती है।
पौधे के बीच लगभग 12-15 इंच और पंक्ति के बीच 24-30 इंच की दूरी रखें।
बुवाई के बाद खेत में हल्की सिंचाई दें।
6. सिंचाई का सही समय
पहली सिंचाई बुवाई के 12-15 दिन बाद करें।
फसल के विकास के दौरान हल्की लेकिन नियमित सिंचाई जरूरी है।
आलू के फूल आने के बाद सिंचाई और आवश्यक हो जाती है।
ओवर-इरिगेशन से बचें क्योंकि ज्यादा पानी से कंद सड़ सकते हैं।
7. खाद और उर्वरकों का उपयोग
यूरिया, सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP), और पोटाश को निश्चित मात्रा में दें।
यूरिया का आधा भाग बुवाई के समय और बाकी नाली चढ़ाने के वक्त दें।
पोटाश कंद के विकास के लिए विशेष रूप से जरूरी है।
नेत्रजन की जरूरत विकास के दौरान पत्ती बनने में होती है।
8. खरपतवार नियंत्रण
खेत में खरपतवार उगने से फसल की वृद्धि रुक सकती है।
बुवाई के बाद नियमित रूप से ज़मीन की जुताई करें या खरपतवार विरोधी दवाओं का प्रयोग करें।
खेती के उचित उपायों से फसलों को साँस लेने और बढ़ने में मदद मिलती है।
9. फलन और कटाई
आलू के बेलों का मुरझाना और पत्तियों का सूखना कटाई के संकेत होते हैं।
कटाई के लिए बेल पूरी तरह मुरझा जाएं और कंद की त्वचा सख्त होनी चाहिए।
आमतौर पर आलू 90-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार होते हैं।
कटाई करते समय सावधानी बरतें ताकि कंदों को चोट न लगे।
10. भंडारण और बाद की देखभाल
कटाई के बाद आलू को साफ और सूखे स्थान पर रखें।
आलू को धूप में ज्यादा न रखें क्योंकि इससे उनकी गुणवत्ता खराब हो सकती है।
लंबे समय तक रखने के लिए भंडारण तापमान 4-6 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
FAQ
आलू कितने दिन में पकता है?
किस्म के अनुसार 60 से 130 दिनों में पकता है।
पहली सिंचाई कब करनी चाहिए?
बुवाई के 12-15 दिन बाद।
आलू के लिए कौन सा उर्वरक अच्छा है?
यूरिया, SSP और पोटाश।
कटाई के संकेत क्या हैं?
बेल मुरझाना और त्वचा का सख्त होना।





